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अध्याय 4: ब्रह्माण्ड के प्रलय की चार कोटियाँ
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श्लोक 37
श्लोक
12.4.37
अनाद्यन्तवतानेन कालेनेश्वरमूर्तिना ।
अवस्था नैव दृश्यन्ते वियति ज्योतिषामिव ॥ ३७ ॥
अनुवाद
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आदि रहित और अनंत काल द्वारा निर्मित सृष्टि की ये अवस्थाएँ परमेश्वर के निराकार रूप हैं। ये उसी प्रकार दृष्टिगोचर नहीं होतीं जैसे आकाश में नक्षत्रों की स्थिति में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों को नहीं देखा जा सकता।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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