श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 4: ब्रह्माण्ड के प्रलय की चार कोटियाँ  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  12.4.2 
 
 
चतुर्युगसहस्रं तु ब्रह्मणो दिनमुच्यते ।
स कल्पो यत्र मनवश्चतुर्दश विशाम्पते ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  चार युगों के एक हज़ार चक्र ब्रह्मा का एक दिन बनाते हैं, जिसे कल्प कहते हैं। हे राजा, इस समय में चौदह मनु आते-जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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