श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 3: भूमि गीत  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  12.3.5 
 
 
समुद्रावरणां जित्वा मां विशन्त्यब्धिमोजसा ।
कियदात्मजयस्यैतन्मुक्तिरात्मजये फलम् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  ये घमंडी राजा मेरे तल पर सारी जमीन को जीत लेने के बाद, समुद्र को जीतने की कोशिश में ज़बरदस्ती समुद्र में उतरते हैं। उनका यह आत्मसंयम, जिसका लक्ष्य है राजनीतिक शोषण, क्या काम का है? आत्मसंयम का असली उद्देश्य आत्मिक मुक्ति है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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