श्री शुक उवाच
दृष्ट्वात्मनि जये व्यग्रान् नृपान् हसति भूरियम् ।
अहो मा विजिगीषन्ति मृत्यो: क्रीडनका नृपा: ॥ १ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा: पृथ्वी पर विजय प्राप्त करने के प्रयासों में लगे इस धरती के राजाओं को देखकर पृथ्वी हँसी। उसने कहा: "देखो, मृत्यु के हाथों में खिलौनों की तरह मौजूद ये राजा मुझ पर विजय पाने की इच्छा कर रहे हैं!"