दूरे वार्ययनं तीर्थं लावण्यं केशधारणम् ।
उदरंभरता स्वार्थ: सत्यत्वे धार्ष्ट्यमेव हि ।
दाक्ष्यं कुटुम्बभरणं यशोऽर्थे धर्मसेवनम् ॥ ६ ॥
अनुवाद
जल के स्रोत को दूरस्थ तीर्थस्थान माना जाएगा, और केवल केश-विन्यास को सुंदरता समझा जाएगा। पेट भरना जीवन का लक्ष्य बन जाएगा, और जो व्यक्ति जितना अधिक दबंग होगा, उसे उतना ही सच्चा माना जाएगा। जो व्यक्ति परिवार का पालन-पोषण कर सकता है, उसे ही कुशल माना जाएगा, और धार्मिक सिद्धांतों का पालन केवल प्रतिष्ठा के लिए किया जाएगा।