श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 2: कलियुग के लक्षण  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  12.2.5 
 
 
अनाढ्यतैवासाधुत्वे साधुत्वे दम्भ एव तु ।
स्वीकार एव चोद्वाहे स्न‍ानमेव प्रसाधनम् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि किसी व्यक्ति के पास धन नहीं है, तो उसे अपवित्र माना जाएगा और ढोंग को पुण्य माना जाएगा। विवाह केवल मौखिक समझौते से तय किए जाएंगे, और कोई भी व्यक्ति जनता के बीच आने के लिए खुद को योग्य समझेगा यदि उसने केवल स्नान किया हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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