श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 13: श्रीमद्भागवत की महिमा  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  12.13.19 
 
 
कस्मै येन विभासितोऽयमतुलो ज्ञानप्रदीप: पुरा
तद्रूपेण च नारदाय मुनये कृष्णाय तद्रूपिणा ।
योगीन्द्राय तदात्मनाथ भगवद्राताय कारुण्यत-
स्तच्छुद्धं विमलं विशोकममृतं सत्यं परं धीमहि ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं उस शुद्ध और निष्कलुष परब्रह्म का ध्यान करता हूँ जो दुख और मृत्यु से रहित हैं और जिन्होंने प्रारंभ में इस ज्ञान के अतुलनीय दीपक को ब्रह्मा से प्रकट किया। तत्पश्चात् ब्रह्मा ने इसे नारद मुनि से कहा, जिन्होंने इसे कृष्ण द्वैपायन व्यास से कह सुनाया। श्रील व्यास ने इस भागवत को मुनियों में सर्वोपरि, शुकदेव गोस्वामी, को बतलाया जिन्होंने कृपा करके इसे महाराज परीक्षित से कहा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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