श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 13: श्रीमद्भागवत की महिमा  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  12.13.15 
 
 
सर्ववेदान्तसारं हि श्रीभागवतमिष्यते ।
तद्रसामृततृप्तस्य नान्यत्र स्याद्रति: क्‍वचित् ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  श्रीमद्भागवत को सभी वैदिक दर्शनों का सार कहा जाता है। जिसे इसके अमृतमय रस से तृप्ति मिल गई है, वह कभी किसी अन्य ग्रंथ की ओर आकर्षित नहीं होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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