श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 13: श्रीमद्भागवत की महिमा  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  12.13.1 
 
 
सूत उवाच
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा: ।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो
यस्यान्तं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम: ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  सूत गोस्वामी ने कहा: उस व्यक्तित्व के प्रति, जिसकी ब्रह्मा, वरुण, इंद्र, रुद्र और मरुत्गण दिव्य स्तोत्रों के उच्चारण और वेदों को उनके उपांगों, पद-क्रमों और उपनिषदों के साथ पढ़कर प्रशंसा करते हैं, जिसे सामवेद के गायक सदैव गाते हैं, जिसे सिद्ध योगी समाधि में स्थिर होकर और स्वयं को उनके भीतर विलीन करके अपने मन में देखते हैं, और जिसकी सीमा किसी देवता या दानव द्वारा कभी नहीं पाई जा सकती—उस परम पुरुषोत्तम भगवान् को मैं सादर नमन करता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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