अङ्गोपाङ्गायुधाकल्पैर्भगवांस्तच्चतुष्टयम् ।
बिभर्ति स्म चतुर्मूर्तिर्भगवान् हरिरीश्वर: ॥ २३ ॥
अनुवाद
इस प्रकार, सर्वोच्च व्यक्तित्व, भगवान हरि चार साकार रूपों में प्रकट होते हैं, जिनमें से प्रत्येक प्रमुख अंगों, गौण अंगों, आयुधों और आभूषणों से युक्त होते हैं। इन विशिष्ट विशेषताओं के माध्यम से, भगवान अस्तित्व के चार चरणों को बनाए रखते हैं।