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अध्याय 10: शिव तथा उमा द्वारा मार्कण्डेय ऋषि का गुणगान
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श्लोक 6
श्लोक
12.10.6
श्रीभगवानुवाच
नैवेच्छत्याशिष: क्वापि ब्रह्मर्षिर्मोक्षमप्युत ।
भक्तिं परां भगवति लब्धवान् पुरुषेऽव्यये ॥ ६ ॥
अनुवाद
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शिवजी ने उत्तर दिया : यह संत ब्राह्मण निश्चित ही किसी भी वर की कामना नहीं करता, यहाँ तक कि मोक्ष की भी नहीं, क्योंकि उसे भगवान् के परम आनंदमय व्यक्तित्व की शुद्ध भक्ति प्राप्त हो गई है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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