श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 10: शिव तथा उमा द्वारा मार्कण्डेय ऋषि का गुणगान  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  12.10.5 
 
 
निभृतोदझषव्रातो वातापाये यथार्णव: ।
कुर्वस्य तपस: साक्षात् संसिद्धिं सिद्धिदो भवान् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  वह उस समुद्र के जल की तरह शांत है, जब हवा नहीं चल रही होती और मछलियाँ चुपचाप तैर रही होती हैं। इसलिए हे प्रभु, क्योंकि आप तप करने वालों को सिद्धि प्रदान करते हैं, इसलिए इस ऋषि को वो सिद्धि प्रदान करें जिसका वह निस्संदेह अधिकारी है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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