श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 10: शिव तथा उमा द्वारा मार्कण्डेय ऋषि का गुणगान  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  12.10.41 
 
 
एतत् केचिदविद्वांसो मायासंसृतिरात्मन: ।
अनाद्यावर्तितं नृणां कादाचित्कं प्रचक्षते ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि यह घटना विशिष्ट और अप्रत्याशित थी, लेकिन कुछ अज्ञान लोग इसकी तुलना भगवान के द्वारा मोहित प्राणियों के लिए बनाई गई मायावी दुनिया के चक्र से करते हैं- एक अंतहीन चक्र जो अनंत काल से चल रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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