सूत उवाच
एवं वरान् स मुनये दत्त्वागात् त्र्यक्ष ईश्वर: ।
देव्यै तत्कर्म कथयन्ननुभूतं पुरामुना ॥ ३८ ॥
अनुवाद
सूत गोस्वामी ने कहाः इस तरह से मार्कण्डेय ऋषि को वरदान देकर शिवजी अपने रास्ते पर चलते हुए देवी पार्वती से उस ऋषि की उपलब्धियों और उसके द्वारा अनुभव की गई भगवान की माया के प्रत्यक्ष प्रदर्शन का वर्णन करते रहे।