श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 10: शिव तथा उमा द्वारा मार्कण्डेय ऋषि का गुणगान  »  श्लोक 31-32
 
 
श्लोक  12.10.31-32 
 
 
सृष्ट्वेदं मनसा विश्वमात्मनानुप्रविश्य य: ।
गुणै: कुर्वद्भ‍िराभाति कर्तेव स्वप्नद‍ृग् यथा ॥ ३१ ॥
तस्मै नमो भगवते त्रिगुणाय गुणात्मने ।
केवलायाद्वितीयाय गुरवे ब्रह्ममूर्तये ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं उस सर्वोच्च भगवान् को नमन करता हूँ जिन्होंने अपनी इच्छा से ही इस महान ब्रह्मांड की रचना की और फिर उसमें परमात्मा के रूप में प्रवेश किया। वे प्रकृति के गुणों को सक्रिय करके इस दुनिया के प्रत्यक्ष निर्माता प्रतीत होते हैं जैसे एक स्वप्न देखने वाला अपने स्वप्नों के अंदर कार्य करता दिखाई पड़ता है। वे प्रकृति के तीनों गुणों के स्वामी और नियंत्रक हैं, फिर भी वे अलग और शुद्ध रहते हैं, उनके जैसा कोई दूसरा नहीं है। वे सभी के सर्वोच्च गुरु हैं और परम सत्य के मूल व्यक्तिगत रूप हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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