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अध्याय 10: शिव तथा उमा द्वारा मार्कण्डेय ऋषि का गुणगान
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श्लोक 28
श्लोक
12.10.28
श्रीमार्कण्डेय उवाच
अहो ईश्वरलीलेयं दुर्विभाव्या शरीरिणाम् ।
यन्नमन्तीशितव्यानि स्तुवन्ति जगदीश्वरा: ॥ २८ ॥
अनुवाद
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श्री मार्कण्डेय बोले : देहधारी जीवों के लिए ब्रह्माण्ड के नियन्ताओं की लीलाओं को समझ पाना अति कठिन है, क्योंकि ऐसे स्वामी अपने शासन में रहने वाले जीवों को ही नमन करते हैं और उनकी स्तुति करते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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