श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 10: शिव तथा उमा द्वारा मार्कण्डेय ऋषि का गुणगान  »  श्लोक 20-21
 
 
श्लोक  12.10.20-21 
 
 
ब्राह्मणा: साधव: शान्ता नि:सङ्गा भूतवत्सला: ।
एकान्तभक्ता अस्मासु निर्वैरा: समदर्शिन: ॥ २० ॥
सलोका लोकपालास्तान् वन्दन्त्यर्चन्त्युपासते ।
अहं च भगवान् ब्रह्मा स्वयं च हरिरीश्वर: ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  सारे लोकों के निवासी और शासन करने वाले देवता, ब्रह्माजी, भगवान हरि और मैं मिलकर उन ब्राह्मणों की वंदना, पूजा और सहायता करते हैं जो संत प्रवृत्ति के, सदैव शांत, भौतिक आसक्ति से मुक्त, सभी जीवों पर दयालु, हमारे प्रति निस्वार्थ भक्ति से युक्त, घृणा से रहित और सम दृष्टि से संपन्न हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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