ब्राह्मणा: साधव: शान्ता नि:सङ्गा भूतवत्सला: ।
एकान्तभक्ता अस्मासु निर्वैरा: समदर्शिन: ॥ २० ॥
सलोका लोकपालास्तान् वन्दन्त्यर्चन्त्युपासते ।
अहं च भगवान् ब्रह्मा स्वयं च हरिरीश्वर: ॥ २१ ॥
अनुवाद
सारे लोकों के निवासी और शासन करने वाले देवता, ब्रह्माजी, भगवान हरि और मैं मिलकर उन ब्राह्मणों की वंदना, पूजा और सहायता करते हैं जो संत प्रवृत्ति के, सदैव शांत, भौतिक आसक्ति से मुक्त, सभी जीवों पर दयालु, हमारे प्रति निस्वार्थ भक्ति से युक्त, घृणा से रहित और सम दृष्टि से संपन्न हैं।