श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 10: शिव तथा उमा द्वारा मार्कण्डेय ऋषि का गुणगान  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  12.10.10 
 
 
भगवांस्तदभिज्ञाय गिरिशो योगमायया ।
आविशत्तद्गुहाकाशं वायुश्छिद्रमिवेश्वर: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  स्थिति से भली-भांति परिचित होने पर शक्तिमान भगवान् शिव ने मार्कण्डेय के हृदय-आकाश में प्रवेश करने के लिए अपनी योगशक्ति का प्रयोग किया, ठीक वैसे ही जैसे हवा किसी छेद से होकर गुज़रती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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