भगवांस्तदभिज्ञाय गिरिशो योगमायया ।
आविशत्तद्गुहाकाशं वायुश्छिद्रमिवेश्वर: ॥ १० ॥
अनुवाद
स्थिति से भली-भांति परिचित होने पर शक्तिमान भगवान् शिव ने मार्कण्डेय के हृदय-आकाश में प्रवेश करने के लिए अपनी योगशक्ति का प्रयोग किया, ठीक वैसे ही जैसे हवा किसी छेद से होकर गुज़रती है।