न ह्येकस्माद् गुरोर्ज्ञानं सुस्थिरं स्यात् सुपुष्कलम् ।
ब्रह्मैतदद्वितीयं वै गीयते बहुधर्षिभि: ॥ ३१ ॥
अनुवाद
यद्यपि परम सत्य अद्वितीय हैं, किन्तु ऋषियों ने विविध प्रकार से उनका वर्णन किया है। अतः संभवतः कोई एक गुरु से अत्यधिक स्थिर या पूर्ण ज्ञान प्राप्त न हो पाए।