श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 9: पूर्ण वैराग्य  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  11.9.31 
 
 
न ह्येकस्माद् गुरोर्ज्ञानं सुस्थिरं स्यात् सुपुष्कलम् ।
ब्रह्मैतदद्वितीयं वै गीयते बहुधर्षिभि: ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि परम सत्य अद्वितीय हैं, किन्तु ऋषियों ने विविध प्रकार से उनका वर्णन किया है। अतः संभवतः कोई एक गुरु से अत्यधिक स्थिर या पूर्ण ज्ञान प्राप्त न हो पाए।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.