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श्रीमद् भागवतम
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श्लोक 22
श्लोक
11.9.22
यत्र यत्र मनो देही धारयेत् सकलं धिया ।
स्नेहाद् द्वेषाद् भयाद् वापि याति तत्तत्स्वरूपताम् ॥ २२ ॥
अनुवाद
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यदि कोई प्राणी प्रेम, घृणा अथवा भय के वशीभूत होकर अपने मन को बुद्धि और पूर्ण एकाग्रता के साथ किसी विशेष शारीरिक स्वरूप पर केन्द्रित कर देता है, तो वह निश्चित रूप से उसी स्वरूप को प्राप्त कर लेगा, जिसका वह ध्यान कर रहा होता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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