हे अजित प्रभुक, आप स्वयं के भीतर त्रिगुणात्मक मायाशक्ति से अचिन्त्य व्यक्त जगत का सृजन, पालन और संहार करते हैं। आप माया के सर्वोच्च नियंत्रक की तरह, प्रकृति के गुणों की परस्पर क्रिया में दिखाई पड़ते हैं। इसके बावजूद, भौतिक कार्यों का आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। आप सदैव अपने शाश्वत भक्ति आनंद में ही लीन रहते हैं। इसलिए आपके लिए किसी भौतिक संदूषण की आशंका नहीं की जा सकती है।