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श्रीमद् भागवतम
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अध्याय 6: यदुवंश का प्रभास गमन
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श्लोक 5
श्लोक
11.6.5
तस्यां विभ्राजमानायां समृद्धायां महर्द्धिभि: ।
व्यचक्षतावितृप्ताक्षा: कृष्णमद्भुतदर्शनम् ॥ ५ ॥
अनुवाद
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उस सर्व श्रेष्ठ ऐश्वर्यों से परिपूर्ण, द्वारका की सुशोभित नगरी में देवताओं ने श्रीकृष्ण के विस्मयकारी रूप को अपनी तृप्ति न होने वाली आँखों से निहारा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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