इदानीं नाश आरब्ध: कुलस्य द्विजशापज: ।
यास्यामि भवनं ब्रह्मन्नेतदन्ते तवानघ ॥ ३१ ॥
अनुवाद
अब ब्राह्मणों के शाप के कारण मेरे परिवार का विनाश पहले ही आरंभ हो चुका है। हे पापरहित ब्रह्मा, जब यह विनाश पूर्ण हो जाएगा और मैं वैकुण्ठ जाऊँगा, तब मैं थोड़े समय के लिए आपके निवास स्थान- ब्रह्मलोक पर अवश्य आउँगा।