श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 6: यदुवंश का प्रभास गमन  »  श्लोक 2-4
 
 
श्लोक  11.6.2-4 
 
 
इन्द्रो मरुद्भ‍िर्भगवानादित्या वसवोऽश्विनौ ।
ऋभवोऽङ्गिरसो रुद्रा विश्वे साध्याश्च देवता: ॥ २ ॥
गन्धर्वाप्सरसो नागा: सिद्धचारणगुह्यका: ।
ऋषय: पितरश्चैव सविद्याधरकिन्नरा: ॥ ३ ॥
द्वारकामुपसञ्जग्मु: सर्वे कृष्णदिद‍ृक्षव: ।
वपुषा येन भगवान् नरलोकमनोरम: ।
यशो वितेने लोकेषु सर्वलोकमलापहम् ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान कृष्ण के दर्शन की इच्छा से बलशाली इंद्र, अपने साथ मरुत, आदित्य, वसु, अश्विनी, ऋभु, अंगिरा, रुद्र, विश्वेदेव, साध्य, गंधर्व, अप्सरा, नाग, सिद्ध, चारण, गुह्यक, महान ऋषि, पितृ तथा विद्याधर और किन्नर को लेकर द्वारका नगरी पहुंचे। कृष्ण ने अपने दिव्य स्वरूप से समस्त मनुष्यों को मोहित कर लिया और सारे जगत में अपनी महिमा फैला दी। भगवान का यश ब्रह्मांड में समस्त अशुद्धियों का नाश करने वाला है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.