इति द्वापर उर्वीश स्तुवन्ति जगदीश्वरम् ।
नानातन्त्रविधानेन कलावपि तथा शृणु ॥ ३१ ॥
अनुवाद
हे राजन, द्वापर युग में लोग ब्रह्माण्ड के स्वामी का इस तरह यशोगान करते थे। कलियुग में भी लोग शास्त्रों के विभिन्न नियमों का पालन करते हुए भगवान की पूजा करते हैं। अब आप कृपया मुझसे इसके बारे में सुनें।