श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 5: नारद द्वारा वसुदेव को दी गई शिक्षाओं का समापन  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  11.5.3 
 
 
य एषां पुरुषं साक्षादात्मप्रभवमीश्वरम् ।
न भजन्त्यवजानन्ति स्थानाद् भ्रष्टा: पतन्त्यध: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि चारों वर्णों और चारों आश्रमों का कोई भी सदस्य उनकी उत्पत्ति के स्रोत परमेश्वर की पूजा करने या जानबूझकर उनका अपमान करने में असफल रहता है, तो वे अपने पद से गिरकर नारकीय जीवन की स्थिति में पहुँच जायेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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