धनं च धर्मैकफलं यतो वै
ज्ञानं सविज्ञानमनुप्रशान्ति ।
गृहेषु युञ्जन्ति कलेवरस्य
मृत्युं न पश्यन्ति दुरन्तवीर्यम् ॥ १२ ॥
अनुवाद
प्राप्त धन का एकमात्र उचित फल धार्मिकता है, जिसके बल पर व्यक्ति जीवन का दार्शनिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है, जो अंततः परब्रह्म की साक्षात् अनुभूति और इस तरह सभी कष्टों से मुक्ति में परिणत हो जाता है। किंतु भौतिकवादी व्यक्ति केवल अपनी पारिवारिक स्थिति को बेहतर बनाने में ही धन का उपयोग करते हैं। वे यह देख नहीं पाते कि अपरिहार्य मृत्यु शीघ्र ही उनके कमज़ोर भौतिक शरीर को नष्ट कर देगी।