श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 5: नारद द्वारा वसुदेव को दी गई शिक्षाओं का समापन  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  11.5.1 
 
 
श्रीराजोवाच
भगवन्तं हरिं प्रायो न भजन्त्यात्मवित्तमा: ।
तेषामशान्तकामानां क निष्ठाविजितात्मनाम् ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा निमि ने पुन: पूछा: हे योगेन्द्रो, आप सभी आत्मा-विज्ञान में परिपूर्ण हैं, इसलिए मुझे बताइए कि उन लोगों की गति क्या होगी जो प्राय: भगवान हरि की पूजा नहीं करते, अपनी भौतिक इच्छाओं की प्यास को बुझा नहीं पाते तथा अपनी इंद्रियों को वश में नहीं कर पाते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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