श्रीराजोवाच
भगवन्तं हरिं प्रायो न भजन्त्यात्मवित्तमा: ।
तेषामशान्तकामानां क निष्ठाविजितात्मनाम् ॥ १ ॥
अनुवाद
राजा निमि ने पुन: पूछा: हे योगेन्द्रो, आप सभी आत्मा-विज्ञान में परिपूर्ण हैं, इसलिए मुझे बताइए कि उन लोगों की गति क्या होगी जो प्राय: भगवान हरि की पूजा नहीं करते, अपनी भौतिक इच्छाओं की प्यास को बुझा नहीं पाते तथा अपनी इंद्रियों को वश में नहीं कर पाते।