भूतैर्यदा पञ्चभिरात्मसृष्टै:
पुरं विराजं विरचय्य तस्मिन् ।
स्वांशेन विष्ट: पुरुषाभिधान-
मवाप नारायण आदिदेव: ॥ ३ ॥
अनुवाद
जब आदि भगवान नारायण ने अपने अंगों से उत्पन्न पाँच तत्त्वों से अपना सर्वकालिक शरीर सृजित किया और तत्पश्चात अपने पूर्णांश से उस सर्वकालिक शरीर में प्रवेश किया, तो वे पुरुष नाम से विख्यात हुए।