ते देवानुचरा दृष्ट्वा स्त्रिय: श्रीरिव रूपिणी: ।
गन्धेन मुमुहुस्तासां रूपौदार्यहतश्रिय: ॥ १३ ॥
अनुवाद
जब देवताओं के सेवकों ने नर-नारायण ऋषि द्वारा उत्पन्न स्त्रियों के मोहक सौन्दर्य पर दृष्टि डाली और उनके शरीरों की सुगन्ध को सूँघा तो उनका मन विचलित हो गया। निश्चित रूप से, ऐसी स्त्रियों के सौन्दर्य और भव्यता को देखकर, देवताओं के प्रतिनिधियों का अपना ऐश्वर्य तुच्छ लगने लगा।