लोकाभिरामां स्वतनुं धारणाध्यानमङ्गलम् ।
योगधारणयाग्नेय्यादग्ध्वा धामाविशत् स्वकम् ॥ ६ ॥
अनुवाद
अपने उस पारलौकिक शरीर को जलाए बिना ही भगवान श्री कृष्ण अपने धाम में प्रवेश कर गए। उनका दिव्य शरीर सभी लोकों का सर्वाधिक आकर्षक विश्राम स्थल है और सभी चिंतन और ध्यान का लक्ष्य है।