श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 31: भगवान् श्रीकृष्ण का अंतर्धान होना  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  11.31.28 
 
 
इत्थं हरेर्भगवतो रुचिरावतार-
वीर्याणि बालचरितानि च शन्तमानि ।
अन्यत्र चेह च श्रुतानि गृणन् मनुष्यो
भक्तिं परां परमहंसगतौ लभेत ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  श्रीमद्भागवत और अन्य शास्त्रों में भगवान् श्री कृष्ण के सर्व-आकर्षक अवतारों के सर्वमंगल पराक्रम और बाल्यावस्था में खेली गई उनकी लीलाओं का वर्णन है। जो कोई भी उनकी लीलाओं के इन वर्णनों का स्पष्ट रूप से कीर्तन करता है, वह भगवान् की दिव्य प्रेम भक्ति प्राप्त करता है, जो सभी सिद्ध मुनियों के अंतिम लक्ष्य हैं।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध ग्यारह के अंतर्गत इकतीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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