श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 31: भगवान् श्रीकृष्ण का अंतर्धान होना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  11.31.20 
 
 
रामपत्न्‍यश्च तद्देहमुपगुह्याग्निमाविशन् ।
वसुदेवपत्न्‍यस्तद्गात्रं प्रद्युम्नादीन् हरे: स्‍नुषा: ।
कृष्णपत्न्‍योऽविशन्नग्निं रुक्‍मिण्याद्यास्तदात्मिका: ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान बलराम की पत्नियों ने भी अग्नि में प्रवेश किया और उनके शरीर को गले लगाया। इसी प्रकार, वसुदेव की पत्नियों ने उनकी चिता में प्रवेश किया और उनके शरीर को चूम लिया। भगवान हरि की पुत्रवधुएँ, प्रद्युम्न से प्रारंभ करके अपनी-अपनी पति की चिताओं में प्रवेश कर गईं। रुक्मिणी और भगवान कृष्ण की अन्य पत्नियाँ, जिनके हृदय पूरी तरह से उनमें लीन थे, उनके द्वारा जलाई गई अग्नि में प्रवेश कर गईं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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