वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास
»
अध्याय 31: भगवान् श्रीकृष्ण का अंतर्धान होना
»
श्लोक 15
श्लोक
11.31.15
दारुको द्वारकामेत्य वसुदेवोग्रसेनयो: ।
पतित्वा चरणावस्रैर्न्यषिञ्चत् कृष्णविच्युत: ॥ १५ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
द्वारका पहुंचते ही दारुक ने वसुदेव और उग्रसेन के चरणों में गिरकर भगवान कृष्ण की हानि पर शोक व्यक्त किया और अपने आंसुओं से उनके चरणों को धो डाला।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.