श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 31: भगवान् श्रीकृष्ण का अंतर्धान होना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  11.31.15 
 
 
दारुको द्वारकामेत्य वसुदेवोग्रसेनयो: ।
पतित्वा चरणावस्रैर्न्यषिञ्चत् कृष्णविच्युत: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  द्वारका पहुंचते ही दारुक ने वसुदेव और उग्रसेन के चरणों में गिरकर भगवान कृष्ण की हानि पर शोक व्यक्त किया और अपने आंसुओं से उनके चरणों को धो डाला।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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