श्री ऋषिरुवाच
दिवि भुव्यन्तरिक्षे च महोत्पातान् समुत्थितान् ।
दृष्ट्वासीनान् सुधर्मायां कृष्ण: प्राह यदूनिदम् ॥ ४ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा : आकाश, पृथ्वी और बाहरी अंतरिक्ष में कई अशुभ लक्षणों को देखकर भगवान कृष्ण ने सुधर्मा नामक सभा भवन में एकत्र यदुओं से इस प्रकार कहा।