श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 30: यदुवंश का संहार  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  11.30.35 
 
 
अजानता कृतमिदं पापेन मधुसूदन ।
क्षन्तुमर्हसि पापस्य उत्तम:श्लोक मेऽनघ ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  जरा बोले : हे मधुसूदन, मैं बहुत ही पापी व्यक्ति हूँ। मैंने अनजाने में ही यह पाप किया है। हे शुद्धतम प्रभु, हे उत्तमश्लोक, कृपा करके इस पापी को माफ़ कर दें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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