प्रत्याक्रष्टुं नयनमबला यत्र लग्नं न शेकु:
कर्णाविष्टं न सरति ततो यत् सतामात्मलग्नम् ।
यच्छ्रीर्वाचां जनयति रतिं किं नु मानं कवीनां
दृष्ट्वा जिष्णोर्युधि रथगतं यच्च तत्साम्यमीयु: ॥ ३ ॥
अनुवाद
एक बार उनकी अलौकिक आकृति पर नजर टिक जाने के बाद महिलाएँ अपनी नजरें हटा नहीं पाती थीं और यदि यह आकृति ऋषियों के कानों में प्रवेश कर उनके हृदय में बस जाती थी, तो फिर वह कभी बाहर नहीं निकलती थी। प्रसिद्धि पाने की बात तो दूर, भगवान के सौंदर्य का वर्णन करने वाले महान कवि भी अपने शब्दों को दिव्य और मनमोहक बना पाते थे। अर्जुन के रथ पर उनके इस रूप को देखकर कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि के सभी योद्धाओं ने मोक्ष प्राप्त कर लिया, जिससे उन्हें भगवान जैसा आत्मिक शरीर मिल गया।