शतवर्षा ह्यनावृष्टिर्भविष्यत्युल्बणा भुवि ।
तत्कालोपचितोष्णार्को लोकांस्त्रीन्प्रतपिष्यति ॥ ९ ॥
अनुवाद
ज्यों-ज्यों विश्व का विनाश नज़दीक आता है, पृथ्वी पर सौ साल का भीषण सूखा पड़ता है। सूरज की गर्मी लगातार सौ साल तक बढ़ती जाती है और इसकी प्रचंड गर्मी तीनों लोकों को परेशान करने लगती है।