श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 3: माया से मुक्ति  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  11.3.6 
 
 
कर्माणि कर्मभि: कुर्वन्सनिमित्तानि देहभृत् ।
तत्तत्कर्मफलं गृह्णन्भ्रमतीह सुखेतरम् ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  गहरी भौतिक इच्छाओं से प्रेरित होकर, देहधारी जीव अपने सक्रिय इन्द्रिय अंगों को कामुक गतिविधियों में लगाता है। फिर वह तथाकथित सुख और दुख में इस संसार में घूमते हुए अपने भौतिक कार्यों के परिणामों का अनुभव करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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