पूजक को खुद को प्रभु का नित्य दास मानकर ध्यान में पूर्णतया लीन होना चाहिए और इस तरह यह स्मरण करना चाहिए कि अर्चाविग्रह उसके हृदय में भी स्थित है, अर्चाविग्रह की भलीभाँति पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात, उसे अर्चाविग्रह के साज-सामान यथा बची हुई फूल-माला को अपने सिर पर धारण करना चाहिए और आदरपूर्वक अर्चाविग्रह को उसके स्थान पर वापस रखकर पूजा का समापन करना चाहिए।