श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 3: माया से मुक्ति  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  11.3.45 
 
 
नाचरेद् यस्तु वेदोक्तं स्वयमज्ञोऽजितेन्द्रिय: ।
विकर्मणा ह्यधर्मेण मृत्योर्मृत्युमुपैति स: ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति जिसने भौतिक इंद्रियों को वश में नहीं किया है, वैदिक आज्ञाओं में अटल नहीं रहता है, तो निश्चय ही वह अधार्मिक और पापपूर्ण कृत्यों में संलग्न रहेगा। फलस्वरूप, उसे जन्म और मृत्यु के चक्र में बार-बार जन्म लेना पड़ेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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