श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 3: माया से मुक्ति  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  11.3.43 
 
 
श्रीआविर्होत्र उवाच
कर्माकर्मविकर्मेति वेदवादो न लौकिक: ।
वेदस्य चेश्वरात्मत्वात् तत्र मुह्यन्ति सूरय: ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री आविर्होत्र ने उत्तर दिया: कर्म, कर्म न करना और वर्जित गतिविधियाँ ऐसे विषय हैं जिन्हें केवल वैदिक साहित्य के प्रामाणिक अध्ययन से ही ठीक से समझा जा सकता है। इस जटिल विषय को सांसारिक कल्पना से कभी भी नहीं समझा जा सकता। प्रामाणिक वैदिक साहित्य स्वयं भगवान के वचनों का साकार रूप है, इसलिए वैदिक ज्ञान परिपूर्ण है। वैदिक ज्ञान के अधिकार को नज़रअंदाज़ करने पर महानतम विद्वान भी कर्म-योग को समझने में चकरा जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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