श्री आविर्होत्र ने उत्तर दिया: कर्म, कर्म न करना और वर्जित गतिविधियाँ ऐसे विषय हैं जिन्हें केवल वैदिक साहित्य के प्रामाणिक अध्ययन से ही ठीक से समझा जा सकता है। इस जटिल विषय को सांसारिक कल्पना से कभी भी नहीं समझा जा सकता। प्रामाणिक वैदिक साहित्य स्वयं भगवान के वचनों का साकार रूप है, इसलिए वैदिक ज्ञान परिपूर्ण है। वैदिक ज्ञान के अधिकार को नज़रअंदाज़ करने पर महानतम विद्वान भी कर्म-योग को समझने में चकरा जाते हैं।