श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 3: माया से मुक्ति  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  11.3.41 
 
 
श्रीराजोवाच
कर्मयोगं वदत न: पुरुषो येन संस्कृत: ।
विधूयेहाशु कर्माणि नैष्कर्म्यं विन्दते परम् ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा निमि बोले : हे मुनियो, कृपया हमें कर्मयोग करने की विधि के बारे में बताएँ। परम पुरुष को अपने व्यावहारिक कार्यों को अर्पण करने की इस विधि से शुद्ध होकर कोई भी इंसान इस दुनिया में ही खुद को सभी भौतिक गतिविधियों से मुक्त कर सकता है और दिव्य पद में शुद्ध जीवन का आनंद ले सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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