श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 3: माया से मुक्ति  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  11.3.35 
 
 
श्रीपिप्पलायन उवाच
स्थित्युद्भ‍वप्रलयहेतुरहेतुरस्य
यत् स्वप्नजागरसुषुप्तिषु सद् बहिश्च ।
देहेन्द्रियासुहृदयानि चरन्ति येन
सञ्जीवितानि तदवेहि परं नरेन्द्र ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री पिप्पलायन ने कहा: पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् ही इस ब्रह्माण्ड के सृजन, पालन तथा संहार के कारण हैं, फिर भी उनका कोई पूर्व कारण नहीं है। वे जागृति, स्वप्न तथा सुषुप्ति जैसी विविध अवस्थाओं में व्याप्त रहते हैं और इनसे परे भी विद्यमान हैं। वे हर जीव के शरीर में परमात्मा रूप में प्रवेश करके शरीर, प्राण-वायु तथा मानसिक क्रियाओं को जागृत करते हैं, जिससे शरीर के सभी सूक्ष्म तथा स्थूल अंग अपने-अपने कार्य शुरू कर देते हैं। हे राजन्, यह जान लें कि भगवान् सर्वोपरि हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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