श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 3: माया से मुक्ति  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  11.3.34 
 
 
श्रीराजोवाच
नारायणाभिधानस्य ब्रह्मण: परमात्मन: ।
निष्ठामर्हथ नो वक्तुं यूयं हि ब्रह्मवित्तमा: ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा निमि ने कहा : अतः कृपा करके मुझे भगवान नारायण के उस दिव्य और पारलौकिक पद के बारे में बताएँ, जो स्वयं परम सत्य और सभी के परमात्मा हैं। आप मुझे यह बता सकते हैं, क्योंकि आप सभी दिव्य ज्ञान में सबसे अधिक निपुण हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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