श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 3: माया से मुक्ति  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  11.3.33 
 
 
इति भागवतान् धर्मान् शिक्षन् भक्त्या तदुत्थया ।
नारायणपरो मायामञ्जस्तरति दुस्तराम् ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  इस तरह से भक्ति-विज्ञान को सीख कर तथा भगवान की भक्ति में पूरी तरह से समर्पित रहकर भक्त भगवान के प्रेम की अवस्था को प्राप्त कर लेता है। और भगवान नारायण की पूर्ण भक्ति के द्वारा भक्त उस माया को आसानी से पार कर लेता है जिसे लाँघ पाना अत्यन्त कठिन है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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