श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 3: माया से मुक्ति  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  11.3.31 
 
 
स्मरन्त: स्मारयन्तश्च मिथोऽघौघहरं हरिम् ।
भक्त्या सञ्जातया भक्त्या बिभ्रत्युत्पुलकां तनुम् ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान् के भक्तगण निरंतर परस्पर भगवान की महिमा का बखान करते हैं। इस प्रकार वे निरंतर भगवान को याद करते हैं और एक-दूसरे को उनके गुणों और लीलाओं का स्मरण कराते हैं। इस तरह से, भक्तियोग के सिद्धांतों के प्रति अपनी भक्ति से, भक्तगण भगवान को प्रसन्न करते हैं, जो उनसे सभी अशुभों को दूर कर देते हैं। सभी बाधाओं से शुद्ध होकर, भक्तगण शुद्ध भगवत्प्रेम को जगा लेते हैं, और इस प्रकार, इस दुनिया में रहते हुए भी, उनके आध्यात्मिक शरीरों में दिव्य आनंद (भाव) के लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे शरीर के बालों का रोमांच होना।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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