श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 3: माया से मुक्ति  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  11.3.30 
 
 
परस्परानुकथनं पावनं भगवद्यश: ।
मिथो रतिर्मिथस्तुष्टिर्निवृत्तिर्मिथ आत्मन: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  मनुष्य को भगवद्भक्तों के साथ मिलकर भगवान् का गुणगान करना सीखना चाहिए। यह विधि अत्यंत शुद्ध करने वाली है। जैसे ही भक्तगण प्रेमपूर्ण मैत्री स्थापित करते हैं, उन्हें आपसी सुख और संतुष्टि का अनुभव होता है। इस तरह एक-दूसरे को प्रोत्साहित करके, वे उस भौतिक इच्छा-तृप्ति को त्यागने में सक्षम होते हैं जो सभी कष्टों का कारण है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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