सर्वत्रात्मेश्वरान्वीक्षां कैवल्यमनिकेतताम् ।
विविक्तचीरवसनं सन्तोषं येन केनचित् ॥ २५ ॥
अनुवाद
ध्यान के द्वारा मनुष्य को अपने आपको नित्य आत्मा और भगवान् को हर चीज का स्वामी मानकर देखना चाहिए। ध्यान को बढ़ाने के लिए घर के प्रति मोह व लगाव को त्यागकर एकांत जगह में रहना चाहिए। शरीर के सजावट संबंधी पदार्थों का त्याग करके, मनुष्य खुद को लत्तों या पेड़ों की छाल से ढँक ले। इस प्रकार से, किसी भी भौतिक परिस्थिति में संतुष्ट रहना सीखना चाहिए।