श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 3: माया से मुक्ति  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  11.3.2 
 
 
नानुतृप्ये जुषन्युष्मद्वचोहरिकथामृतम् ।
संसारतापनिस्तप्तो मर्त्यस्तत्तापभेषजम् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि मैं आपके द्वारा वर्णित भगवान् की महिमा के अमृत को पी रहा हूँ, फिर भी मेरी प्यास नहीं बुझी। प्रभु और उनके भक्तों के ऐसे अमृतमयी वर्णन मेरे जैसे संसार के तीनों तापों से पीड़ित बद्धजीवों के लिए औषधि का काम करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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